Tuesday, February 08, 2011

खिलने को है व्याकुल होता इन प्राणों में कोई.

चन्द्र कुंवर बर्त्वाल(१९१९-१९४७) प्रक्रिति के अद्भुत चितेरे कवि थे.बहुत कम उम्र में उनका निधन हो गया था. उनका रचना काल १० साल से भी कम रहा. वसन्त पंचमी पर आपको पढाता हूं चन्द्र कुंवर की यह अद्भुत कविता--
"अब छाया में गुंजन होगा, वन में फूल खिलेंगे/
दिशा-दिशा से अब सौरभ के धूमिल मेघ उठेंगे.
अब रसाल की मंजरियों पर पिक के गीत झरेंगे/
अब नवीन किसलय मारुत में मर्मर मधुर करेंगे.
जीवित होंगे वन निद्रा से, निद्रित शैल जगेंगे/
अब तरुओं में मधु से भीगे कोमल पंख उगेंगे.
पद-पद पर फैली दूर्वा पर हरियाली जागेगी/
बीती हिम रितु अब जीवन में प्रिय मधु रितु आयेगी.
रोयेगी रवि के चुम्बन से अब सानंद हिमानी/
फूट उठेगी अब गिरि-गिरि के उर से उन्मद वाणी.
हिम का हास उडेगा धूमिल सुरसरि की लहरों पर/
लहरें घूम-घूम नाचेंगी सागर के द्वारों पर.
तुम आओगी इस जीवन में कहता मुझसे कोई/
खिलने को है व्याकुल होता इन प्राणों में कोई."