Wednesday, September 28, 2016

अति उत्साही गोरक्षकों का अत्याचार बढ़ता ही गया

दादरी में अखलाक की हत्या का एक वर्ष

नवीन जोशी
28 सितम्बर, 2015. उत्तर प्रदेश के दादरी इलाके का बिसाहड़ा गांव. शाम को पास के एक मंदिर के लाउडस्पीकर से कोई घोषणा करता है कि “बकरीद के मौके पर मुहम्मद इखलाक के परिवार ने गाय की हत्या की है और गोमांस खाया है. अब भी उसके घर में गोमांस रखा है.” थोड़ी देर बाद लाठी-सरिया से लैस भीड़ मोहम्मद अखलाक के घर धावा बोलती है. करीब 50 साल के अखलाक की इतनी पिटाई होती है कि उसकी जान चली जाती है. उसके 20 साल के बेटे दानिश को गम्भीर हालत में अस्पताल में भर्ती कराना पड़ता है. उसकी पत्नी और बूढ़ी मां को भी नहीं बख्सा जाता.
गोहत्या के शक में इखलाक की हत्या देश-विदेश के मीडिया की सुर्खियां बनता है. “बीफ” खाने की आजादी और गोवध कानून पर सख्ती से अमल की तीखी बहसें ड्रॉइंग रूम से लेकर सोशल साइटों पर छा जाती हैं. सेकुलर या बहुलतावाद के समर्थक इस हत्या को तर्कवादियों एम कलबुर्गी, नरेंद्र दाभोलकर, गोविंद पानसरे की हत्याओं से जोड़कर मोदी सरकार में बढ़ती “असहिष्णुता” और “अभिव्यक्ति की आजादी पर अंकुश” के खिलाफ सड़कों पर उतर आते हैं.
विभिन्न भाषाओं के साहित्यकारों, रंगकर्मियों, इतिहासकारों, फिल्मकारों-कलाकारों, विज्ञानियों, आदि-आदि के सामूहिक सम्मान/पुरस्कार वापसी, संस्थानों से इस्तीफों और प्रदर्शनों से अभूतपूर्व प्रतिरोध होता है. इसके मुकाबले सरकार समर्थकों का जमावड़ा भी लगता है.
लेकिन धीरे-धीरे यह प्रतिरोध ठंडा पड़ने लगता है. जो मुद्दा शांत नहीं होता, वह है अखलाक की हत्या का कारण या बहाना – गोहत्या और गोमांस खाने के आरोप.
अखलाक की हत्या के ठीक एक साल बाद हम पाते हैं कि “गोहत्या का विवाद और भी हिंसक रूप लेता जा रहा है. साल भर में इसी आरोप में “गोरक्षकों” के हाथों कम से कम तीन लोगों की हत्या हो चुकी है और दर्जनों लोग निर्मम पिटाई का शिकार हुए हैं. जगह-जगह रातों रात “गोरक्षक”, “गोसेवक” और उनकी समितियां उग आई हैं. अकेले दादरी इलाके में ही दर्जनों “गोरक्षक समितियों” का पता चला है और उनके “अभियानों, “छापोंसे होने वाली झड़पों की खबरें आती रहती हैं. इन तथाकथित “गोरक्षकों” के हमलों का शिकार दलित और मुस्लिम हो रहे हैं. मरे जानवरों की खाल उतारते दलितों पर गोहत्या का आरोप लगाया जाता है. मुसलमानों पर “गोमांस” खाने का आरोप लगाना बहुत आसान है. जम्मू-कश्मीर के एक निर्दल विधायक पर “बीफ-पार्टी” करने का आरोप लगा कर भारी हंगामा किया गया था.
अक्टूबर 2015 में दिल्ली के केरल हाउस में “बीफ” परोसे जाने की शिकायत के बाद वहां पुलिस के छापे से लेकर जुलाई 2016 में गुजरात के उणा कस्बे में गोहत्या के आरोप में दलित युवकों को नंगा कर लोहे की रॉड से पीटे जाने तक पूरे देश में, विशेष रूप से उत्तर भारत में हिन्दूवादी संगठनों की ज्यादातियों के इतने मामले सामने आए हैं कि  भारतीय जनता पार्टी को इसके राजनीतिक दुष्परिणाम का डर सताने लगा है. तभी तो अखलाक की हत्या की निंदा करने की मांग के बावजूद चुप रहते आए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने करीब ग्यारह महीने बाद अपनी चुप्पी तोड़ी और अधिसंख्य गोरक्षकों को “असामाजिक” और “फर्जी” बताया. उन्हें यहां तक कहना पड़ा कि 80 फीसदी “गोरक्षक” फर्जी हैं जो रात में अवैध काम करते हैं और दिन में गोरक्षा के नाम पर अपनी दुकानें चलाते हैं.
प्रधानमंत्री की इस तीखी प्रतिक्रिया  के स्पष्ट कारण हैं. पिछले एक वर्ष में गुजरात, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और झारखण्ड से लेकर सुदूर मणिपुर और जम्मू-कश्मीर तक तथाकथित “गोरक्षकों” के अत्याचार बढ़ते जा रहे हैं और बड़ा राजनीतिक नुकसान साफ दिखाई दे रहा है.
अखलाक की हत्या के वक्त भाजपा नेताओं की प्रतिक्रियाएं निंदात्मक नहीं थीं.  केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा था- “हम यह कैसे स्वीकार कर सकते हैं कि इस देश में गाएं मारी जाएं” और संस्कृति मंत्री महेश शर्मा का बयान था कि “अखलाक की मौत एक दुर्घटना है.”
भाजपा चुनाव में “गौ और गोवंश की रक्षा को बढ़ावा और मजबूती देने” का वादा करती रही है. इसलिए भी अतिउत्साही “गोरक्षकों” पर उसका कोई नियंत्रण नहीं है. प्रधानमंत्री की निंदा के बावजूद उनके अभियान रुके नहीं हैं.
सच्चाई यह है कि  यू पी और गुजरात समेत कई राज्यों के विधान सभा चुनावों के लिए दलितों का समर्थन हासिल करने के लिए प्रयासरत भाजपा को तथाकथित गोरक्षकों के अत्याचारों के कारण दलितों के व्यापक आक्रोश का सामना करना पड़ा है. “गोमांस” के संदेह पर घरों में छापों, बिरयानी के ठेलों से बोटी के नमूने एकत्र करने, जानवरों को ढो रहे ट्रकों को रोक कर ड्राइवरों की पिटाई जैसे मामले सामने आते रहे हैं. खाल निकालने के लिए मरी गायों को ले जा रहे दलित युवकों पर गुजरात के उणा कस्बे में  जो बर्बर अत्याचार किए गए उसका देशव्यापी विरोध तो हुआ ही, दलितों ने भी बड़े पैमाने पर एकजुटता दिखाई और विरोध प्रदर्शन किए. कई जगह तो दलितों ने मरे जानवरों को उठाने तक से इनकार कर दिया. सुरेंद्र नगर में 80 गायों के शवों को इसी कारण दफनाना पड़ा.
गोहत्या भारत में हमेशा से सम्वेदनशील मुद्दा रहा है. अधिसंख्य राज्यों में गोहत्या निषेध कानून लागू है. केरल, पश्चिम बंगाल और असम को छोड़कर उत्तर-पूर्व के सभी राज्यों में गोहत्या पर रोक नहीं है. आंन्ध्र प्रदेश, तेलंगाना और असम में “वध योग्य” यानी और किसी भी काम के लिए अनुपयुक्त और बिहार में 15 वर्ष से ऊपर की गाएं मारी जा सकती हैं.
गो हत्या निषेध में गोवंश भी शामिल है जिसमें बछड़े, बैल और सांड़ आते हैं. भैंसें भारत में आधिकारिक रूप से काटी जाती हैं. सच तो यह है कि भैस के मांस यानी बीफ के निर्यात में भारत विश्व में पहले स्थान पर है. वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के अधीन कृषि एवं प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ निर्यात विकास प्राधिकरण के अनुसार 1969 में शुरू बीफ का निर्यात 2015-16 में दो खरब 66 अरब 81 करोड़ 56 लाख रु तक पहुंच गया है. भारतीय भैंस का मांस कम वसा और कॉलेस्ट्रॉल के कारण साठ से ज्यादा देशों में काफी पसंद किया जाता है. देश के विभिन्न नगर निकायों में रजिस्टर्ड बूचड़खानों की संख्या चार हजार और गैर-रजिस्टर्ड की संख्या 25 हजार बताई गई है, जो वास्तव में इससे कहीं ज्यादा होगी.
यह भी सच है कि गोहत्या पर कानूनी रोक के बावजूद गोमांस के लिए चोरी-छुपे गोहत्या होती हैं. भैसों के साथ-साथ गोवंश की तस्करी भी होती है. कई प्रभावशाली लोग, हिंदू-मुसलमान दोनों, इस वैध-अवैध धंधे में शामिल हैं, जिन्हें पुलिस का संरक्षण मिलता है.
इस धंधे का धर्म और राजनीति से कोई सम्बंध नहीं है लेकिन केंद्र में भाजपा सरकार के भारी बहुमत से आने के बाद यह धर्म और राजनीति दोनों से जोड़ दिया गया. शांत पड़ीं चंद गोरक्षा समितियां न केवल सक्रिय हो उठीं बल्कि बड़ी संख्या में नई अति उत्साही समितियां खड़ी हो गईं. अखलाक के घर हमला ऐसी ही समितियों की अति सक्रियता का नतीजा था.
हमले के समय अखलाक के घर से “गोमांसभी  “बरामद” किया गया था. प्रारम्भिक जांच में राज्य सकार की लैब ने उसे बकरे का गोश्त बताया लेकिन बाद में मथुरा की सेण्ट्रल फॉरेन्सिक लैब ने उसे “गाय या गोवंश” का मांस बताया. इस रिपोर्ट के आधार पर बिसाहड़ा के कुछ लोग अदालत पहुंचे और कोर्ट के आदेश पर इखलाक के परिवार वालों के खिलाफ 15 जुलाई 2016 को गोवध निषेध कानून में मुकदमा दर्ज किया गया. अखलाक के भाई जान मुहम्मद को छोड़कर बाकी सभी लोगों की गिरफ्तारी पर अदालत ने रोक लगा दी. जान मुहम्मद भी बाहर ही हैं.
अब तक यह साबित नहीं हो सका है कि अखलाक ने गोहत्या की थी. गोहत्या पर रोक के बावजूद गोमांस खाना यूपी में गैर-कानूनी नहीं है.
भारत जैसे बहुलतावादी देश में किसी की रसोई या प्लेट में ताक-झांक करना तथा खान-पान के आधार पर या सिर्फ शक की बिना पर हमले करना कानून अपने हाथ में लेने के अलावा निजी स्वतंत्रता के हनन के दायरे में ही आएगा. 
समाज में बंटवारा बढ़ता जा रहा है. गायों की रक्षा तो नहीं ही हो पा रही.   (बीबीसी.कॉम/हिंदी, 28 सितम्बर, 2016))

  




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