Monday, March 06, 2017

नतीजों के इंतजार तक कयास, दावे और भ्रम

प्रदेश की चुनावी तस्वीर अंतत: क्या होगी, इस बारे में बहुए से कयास चल रहे हैं. कहा जा रहा है कि मतदान के हर चरण के बाद बदल रही है. मतदान का सिर्फ एक चरण बाकी है. विकास के दावों और वादों से शुरू हुआ प्रचार हर चरण के बाद और तीखा होकर निजी आरोपों-प्रत्यारोपों बदलता गया. जातीय जोड़-तोड़ तथा धार्मिक ध्रुवीकरण तो हर चुनाव में हर दल की रणनीति का हिस्सा होते हैं. इस बार बेमतलब और बेहूदी जुमलेबाजी में शीर्ष नेता भी खूब शामिल रहे. क्या ऐसा इसलिए है कि चुनावी तस्वीर किसी एक के स्पष्ट पक्ष में नहीं दिख रही है और नेता विचलित हैं?
अधिकारी पत्रकारों से पूछ रहे हैं कि किसे जिता रहे हो. पत्रकार इंटेलीजेंस के अधिकारियों से उनका आकलन पता करने में लगे हैं. मीडिया की निजी निष्ठाएं उनके कवरेज में झलक रही हैं. सोशल साइटों पर भांति-भांति के आकलन दिखाई दे रहे हैं. वहां एक अलग संग्राम छिड़ा हुआ है. भाजपा, सपा-कांग्रेस औए बसपा के समर्थक एक दूसरे के खिलाफ शब्दों के जहरीले तीर छोड़ रहे हैं. प्रकट रूप में किसी पार्टी के पक्ष में लहर नहीं दिखती लेकिन कुछ विश्लेषक भाजपा और कुछ बसपा की लहर भी देख रहे हैं.
सपा का झगड़ा जब चरम पर था तब लगता था कि यूपी की सत्ता के लिए मुख्य लड़ाई भाजपा और बसपा के बीच होगी. सन 1992 के बाबरी मस्जिद ध्वंस के बाद से सपा के साथ मजबूती से जुड़े रहे मुसलमान मतदाता असमंजस में बताए जा रहे थे. कहा जा रहा था कि उनका झुकाव मायावती की ओर है. मायावती की रणनीति भी दलित-मुस्लिम समीकरण के सहारे चुनाव जीतने की थी. भाजपा भी बसपा को मुख्य प्रतिद्वंद्वी मान कर मायावती को दलित विरोधी साबित करने में लगी थी.    
सपा की लड़ाई का फैसला अखिलेश यादव के पक्ष में होते ही यह दृश्य बदलने लगा. लगभग पूरी सपा पर अखिलेश का कब्जा होने, सायकिल चुनाव चिह्न उन्हें मिलने तथा कांग्रेस से अंतिम क्षणों में तालमेल होने से मुसलमानों का असमंजस खत्म होने के संकेत देखे जाने लगे. युवा मुख्यमंत्री अखिलेश की साफ-सुथरी छवि, अपराधी छवि के नेताओं से दूरी बनाने और कतिपय उल्लेखनीय उपलब्धियों के आधार पर कहा जाने लगा कि वे दौड़ में आगे रहेंगे.
भाजपा 2014 के लोक सभा नतीजों की बदौलत और प्रधानमंत्री मोदी की छवि के सहारे स्वाभाविक रूप से सत्ता की दावेदार है. तर्क यह कि अमित शाह की टीम ने जातीय कार्ड बहुत खूबी से चले हैं. मुसलमान मतदाताओं में सपा या बसपा का असमंजस पैदा करने में भी उनकी भूमिका है. इस आधार पर बताया जा रहा है कि भाजपा सरकार बना लेगी.
कोई पश्चिम यूपी का मतदान भाजपा के खिलाफ होने के दावे कर रहा है तो कोई बुंदेलखण्ड में भाजपा की पताका फहरा रहा है. किसी रिपोर्ट में बताया जा रहा है कि अखिलेश यादव की बेहतर छवि और उनकी चर्चित उपल्ब्धियों से उन्हें तारीफ तो खूब मिल रही है लेकिन वोट उस अनुपात में नहीं. सपा-कांग्रेस का गठबंधन सम्भवत: खास फायदे का सौदा नहीं हुआ, वगैरह.
विभिन्न न्यूज चैनलों को देखते और अखबारों-पोर्टलों के विश्लेषण पढ़ कर भ्रम ही होता है. आठ मार्च को मतदान के बाद एक्जिट पोल के नतीजे भी जाहिर है अलग-अलग तस्वीर पेश करेंगे. सभी को बेसब्री से नतीजों का इंतजार है. गायत्री प्रजापति को भी, जो फिलहाल पुलिस सुरक्षा में अंतर्धान हैं!  (नभाटा, 5 मार्च, 2017) 

  

No comments: