Saturday, April 15, 2017

रिश्वत के लिए तो नकदी ही चाहिए होगी!


चौदह अप्रैल को अम्बेडकर जयंती मनायी जाती है. उसी दिन गुड फ्राइडे पड़ा. इस बार इसी दिन डिजिटल इण्डिया डे भी मनाया गया. डिजिधन मेलेलगाये गये. प्रधानमंत्री का बड़ा जोर है डिजिटल इण्डिया पर. सब कुछ, विशेष रूप से सारे भुगतान डिजिटल हो जाएं, ऐसा उनका प्रयास है. नोटबंदी को, जो पहले चोर धन के खिलाफ अभियान के तौर पर शुरू की गयी थी, बाद में डिजिटल भुगतान का बाना पहना दिया गया.
हाल ही में नीति आयोग के चेयरमैन का यह बयान छपा था कि जल्दी ही एटीएम, क्रेडिट कार्ड, डेबिट कार्ड, सब खत्म हो जाएंगे. सिर्फ डिजिटल ट्रांजेक्शन हुआ करेगा. डिजिटल इण्डिया डे पर उनका बयान याद करते हुए बड़ा अचम्भा हो रहा है. डिजिटल ट्रांजेक्शन हो, बहुत अच्छी बात है लेकिन अपना हिंदुस्तान भी तो इसके लिए तैयार हो. इण्डियातो डिजिटल हो जाएगा, मान लिया, लेकिन अपने हिंदुस्तान को “डिजिधनसमझने में ही लम्बा समय लगेगा.
एटीएम फिर सूखने लगे हैं. जनता एक से दूसरे एटीएम की तरफ दौड़ रही है. इसके पीछे की यह सच्चाई सामने आ रही है कि रिजर्व बैंक ने बैंकों को नकदी देने में कटौती शुरू कर दी है. नकदी कम आने से एटीम पूरे नहीं भरे जा रहे. जनवरी से मार्च के बीच बैंकों की नकदी 30 फीसदी कम कर दी गयी है. आगे इसे 50 फीसदी तक कम करने का लक्ष्य बताया जा रहा है. मकसद वही कि ज्यादा से ज्यादा लेन-देन डिजिटल हो.
नोटबन्दी के बाद के कुछ महीनों में डिजिटल लेन-देन बढ़ गया था. सरकार इससे खुश थी. फिर नकदी सप्लाई के साथ डिजिटल लेन-देन कम हो गया. अब सरकार रिजर्व बैंक की मार्फत जनता पर डिजिटल लेन-देन बढ़ाने का दवाब बना रही है.
इसमें कोई हर्जा नहीं है, बशर्ते हमारी सामाजिक-आर्थिक संरचना एकसार होती. गांवों की बात जाने दीजिए, बड़े शहरों में एक बड़ी आबादी का पूरा जीवन नकदी के बिना चलता ही नहीं. घर से कूड़ा उठाने वालों को पहली तारीख होते ही नकद पैसा चाहिए. घर-घर झाड़ू-पोचा लगाने, खाने बनाने वाली महिलाएं, अखबार-सब्जी-दूध वाले, रिक्शा-ऑटो वाले, दिहाड़ी मजदूर, चाट-चना-सत्तू, खीरा- ककड़ी, फल के ठेले-खोमचे-रेहड़ी वाले... कहां तक गिनाएं. इन सब की बड़ी दुनिया है हमारे चारों तरफ. इनको कैसे डिजिधनके दायरे में लाया जाएगा? कूलर में घास भरने वाले को कैसे डिजिटल भुगतान किया जाए?
लेन-देन में पारदर्शिता और भ्रष्टाचार कम करने में डिजिटल ट्रांजेक्शन बहुत मददगार होगा लेकिन इसके लिए उस विशाल आबादी का जीवन संकट में नहीं डाल देना चाहिए जो बैंकिंग से ही अभी बाहर है.अभी हम पूरी तरह क्रेडिट-डेबिट कार्ड वाले भी नहीं हुए. करोड़ों नए खाते खुलवा देने से ही सारा देश बैंकिंग के दायरे में नहीं आ जाता. ऐसे हिंदुस्तान के लिए डिजिटल इण्डियाअभी तो अव्यावहारिक ही है.
सरकारी लेन-देन, जन-कल्याण योजनाओं, आदि में डिजिटल भुगतान को निश्चय ही बढ़ावा दिया जाना चाहिए ताकि भ्रष्टाचार कम हो. लेकिन हमारे भ्रष्ट तंत्र ने इसका आसान तोड़ निकाल लिया. खाते में धन ट्रांसफर करने से पहले कमीशन रखवा लिया जाता है. घूस का भुगतान तो डिजिटल होगा नहीं! उसके लिए नकदी ही चाहिए. कागज पर या सिद्धांत में विचार बहुत सुंदर लग सकता है. जमीन पर असलियत कुछ और होती है.   
(नभाटा, 15 अप्रैल, 2017)

  

No comments: