Saturday, April 29, 2017

भरोसे और ईमान की उलट-पुलट दुनिया!


पेट्रोल पम्पों पर पड़े छापे में घटतौली के अत्याधुनिक तरीके की खबर पढ़ कर हम बहुत देर तक अखबार थामे सन्न रह गये. कहां-कहां और कैसे-कैसे होने लगी है चोरी. हमारी प्रतिभाएं क्या इसी में लगी हैं कि कैसे ठगी की जाए, कैसे चोरी की जाए, कैसे मिलावट की जाए ? कमाने का वाजिब तरीका बचा नहीं या लिप्सा इतनी ज्यादा बढ़ गयी है कि हर धंधे में मुनाफे के वास्ते चोर रास्तों की तलाश पहले होती है? किस पर और कैसे भरोसा करें?

नोटबंदी के दिनों की बात है. पेट्रोल भराने के लिए पम्प पर जैसे ही गाड़ी रोकी, एक  युवक लपक कर हाथ मिलाने आ गया. अपना आई-कार्ड दिखाते हुए उसने कहा था- सर, मैं फौजी हूँ. आप मेरे क्रेडिट कार्ड से तेल भरवा लीजिए और अपना पांच सौ रु कैश मुझे दे दीजिए.मेरे हाथ में नोट देख कर उसने कहा- मुझे कैश की बहुत जरूरत है और मिल नहीं रहा. सभी से यह निवेदन कर रहा हूँ.’  हमने कुछ देर सोचा फिर माफी मांग ली- सॉरी, समय बहुत खराब है. मैं नहीं कर पाऊंगा.’ ‘कोई बात नहीं, सरकह कर वह दूसरे ग्राहक के पास चला गया. बाद में बहुत अफसोस हुआ. उस फौजी पर भी हमने संदेह किया. वह आई-कार्ड दिखा रहा था. पेट्रोल पम्प वालों से उसने सहमति ली होगी. संकट में इस तरह नकदी जुटा रहा होगा. शक करने के लिए हमने खुद को धिक्कारा.

फिर सोचा, क्या करें. हर तरफ धोखाधड़ी है. वह फौजी था भी? सही और जरूरत मंद आदमी पर भी ठग होने का संदेह होता है. कई बार फोन आते हैं कि हम अमुक संस्था से बोल रहे हैं. एक बच्चे को कैंसर के इलाज के लिए आपकी मदद चाहिए. संस्था वाले पूरा परिचय देते हैं. मामला गलत नहीं लगता. कुछ लोग मेल और फोन पर बताते हैं कि महज पांच सौ रु महीने में आप एक अनाथ बच्चे की परवरिश कर सकते हैं. बैंक खाते समेत सारा विवरण देते हैं. मदद करने का मन करता है लेकिन फिर शक होने लगता है. यह कैसा वक्त है कि जरूरतमंद की मदद करना चाह कर भी नहीं कर पाते. कभी मदद कर दी तो बहुत दिनों तक संदेह होता रहता है कि सही जगह मदद पहुंची भी होगी!

पेट्रोल पम्प पर हमसे कहा जाता है- ‘सर, जीरो देख लीजिए.हम मीटर पर अंत तक आंखें गड़ाए रहते हैं. दूसरों को भी ऐसी हिदायत देते हैं. अब पता चला कि मीटर सही है मगर उसकी तौल में इलेक्ट्रॉनिक चिप लगी है जो हमारी सतर्कता के कान काटती आयी है. कितने आराम से हम ठगे जा रहे हैं! बेवकूफ साबित हुए हम!

तीसरे-चौथे महीने रद्दी वाले को पुराने अखबार बेचते हुए हम उसकी लानत-मलामत करते हैं. उसके तराजू और बांट जांचते हैं. फिर भी उसे ठग और चोर बताते हैं. वह पेट की दुहाई देते हुए सब सुनता रहता है.  रिक्शे वाले को हम कितनी आसानी से कह देते हैं – लूट मचा रखी है, जरा-सी दूरी के दस रु मांग रहे हो?’ गरीब रद्दी वाले, रिक्शे वाले क्या ठगते-लूटते होंगे! लूट तो वे रहे हैं जिन्हें हम सलाम करते हैं, जिन पर शंका भी नहीं हो पाती.  
(नभाटा, 29 अप्रैल, 2017) 



1 comment:

deepak said...

Nice Sir