Friday, September 01, 2017

स‌‌‌‌ड़क पर मौत के सौदागर


मुम्बई में अतिवृष्टि से हुए भारी जलजमाव में मशहूर डॉक्टर और वकील समेत कई लोगों की मौतें दिल दहलाने वाली हैं.  द्रवित मन से हम पूछ रहे हैं कि पेट रोगों के प्रख्यात उस डॉक्टर क्या सूझी होगी कि कार से उतर कर पैदल घर जाने लगे और मैनहोल में गिए कर लाश बन गये! मन बहलाने के लिए कह सकते हैं कि मौत कितने बहानों से बुला लेती हैमगर क्या इन मौतों के लिए कोई जिम्मेदार नहीं है?
तत्काल ध्यान अपने शहर में हो रही ऐसी ही कई मौतों की तरफ चला जाता हैजिन्हें हम मौत का विचित्र बुलावा भले मान लेंहोती वे दूसरों की घोर लापरवाहियों से ही हैं. चंद रोज पहले का वाकया याद कीजिएतीन दोस्त एक कार से जा रहे थे कि उलटी दिशा से एक ट्रक आ गया. ट्रक में लदे लोहे के एंगल बाहर निकल रहे थे. एक एंगल सामने का शीशा तोड़ते हुए कार चला रहे युवक की छाती को चीरता हुआउसकी पीठ व सीट फाड़ता हुआ पीछे बैठे युवक के शरीर में जा धंसा. एक युवक की मौत हो गयीदूसरा मरणासन्न था.
क्या हमें यह मान लेना चाहिए कि यह मौत थी जो लोहे के एंगल का रूप धर कर आयीआये दिन शहर में ऐसी दर्दनाक वारदात होती रहती हैं. कभी कोई बिजली के खम्भे में उतरे करण्ट से मरता हैकोई खुले मैनहोल में गिरकरकोई सड़क पर साड़ों की लड़ाई का शिकार बनता है. इनके लिए कभी किसी को कटघरे में खड़ा नहीं किया जाता. ये दुर्घटनाएं हरगिज नहीं हैं. इन्हें हत्या कहा जाना चाहिए.
ट्रकठेलेरिक्शेआदि पर एंगलसरियाआदि खुले आम व्यस्त सड़कों पर ढोये जाते हैं जो खतरनाक ढंग से बाहर निकले रहते हैं. अक्सर ही वे गलत दिशा में चलते हैं. किसी को बहुत ख्याल आया तो एक लाल कपड़ा सरिया पर लटका दियाअन्यथा कोई चेतावनी देना जरूरी नहीं समझा जाता. कई बसोंटेम्पोऔर दूसरी गाड़ियों में उनके टूटे हिस्से या गाड़ी के बचाव के लिए लगाये गये एंगल की नोकें भाले की तरह बाहर निकली रहती हैं. अक्सर ये जानलेवा साबित होते हैं.
क्या मौत का ऐसा इंतजाम करने वालों पर इरादतन न सहीगैर-इरादतन हत्या का मुकदमा नहीं लिखाया जाना चाहिएक्या आरटीओ और ट्रैफिक पुलिस को भी इन मौतों के लिए कटघरे में खड़ा नहीं किया जाना चाहिएकिसी भी वाहन में बाहर निकले नुकीले हिस्से मोटर वाहन अधिनियम में गैरकानूनी हैं.टक्कर-रोधी उपाय भी नुकीले नहीं होने चाहिए. सरिया-एंगल इस तरह ढोना तो जुर्म है. जुर्म करने वाले और होने देने वाले अपराधी ठहरते हैं. सांड़ बाजार में किसी की जान ले लें या खुले मैनहोल में मौतें हों तो नगर निगम पर अभियोग क्यों नहीं चलना चाहिए?
एक बड़े सरकारी अस्पताल के शव-गृह में आवारा कुत्ते किसी महिला की लाश नोच डालें तो च्च-च्च-च्च’ करके उस बेचारी की किस्मत पर रोना चाहिए या अस्पताल प्रशासन के अलावा नगर निगम पर मुकदमा दर्ज करना चाहिए?
हमारे यहां ऐसी सामाजिक सक्रियता नहीं दिखाई देती. दूसरे देशों में इन घातक लापरवाहियों पर तुरंत मुकदमे और बड़ी सजाएं हो जातीं. आरटीओनगर निगमट्रैफिकबिजली जैसे विभाग न केवल लापरवाह हैंवरन्‍ मुट्ठी गर्म करके ऐसी जानलेवा हरकतों को होने देने के अपराधी भी हैं.

पीआईएल वाले महारथी  क्या इसे मुद्दा नहीं बनाएंगे
(सिटी तमाशा, नभाटा, 02 सितम्बर 2017)

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