Friday, September 08, 2017

मेट्रो के गौरव-बोध में राजनैतिक फजीहत


राजधानी लखनऊ के लिए मेट्रो सेवा की शुरुआत गौरव का अवसर थी लेकिन श्रेय लूटने की कोशिश में सत्तारूढ़ भाजपा और विरोधी दल सपा ने इसे अनावश्यक विवाद का विषय बना दिया. मुख्यमंत्री से लेकर भाजपा के कई नेता मेट्रो के उद्घाटन अवसर पर सपा सरकार और उसके नेताओं का मजाक उड़ाते रहे. पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी, जिन्हें निश्चय ही मेट्रो परियोजना शुरू करने का श्रेय है, जवाबी तंज कसे. सपा कार्यकर्ताओं को मेट्रो स्टेशन के भीतर नारेबाजी करने की क्या जरूरत थी? जब आम शहरी मेट्रो की पहली सवारी का सुखद अनुभव करने पहुंच रहे थे तो सपाइयों पर लाठी चलाई जा रही थी.
अच्छा होता यदि भाजपा सरकार सिर्फ औपचारिक निमंत्रण भेजने की बजाय अखिलेश यादव को उद्घाटन समारोह में सादर बुलाती, अखिलेश वहां जाते और राज्यपाल, मुख्यमंत्री एवं राजनाथ सिंह के साथ मेट्रो की उद्घाटन-सवारी करते. यह भाजपा का निजी कार्यक्रम नहीं था. जनता के धन से बनी एक अच्छी और जरूरी परिवहन सेवा के उद्घाटन का अवसर राजनैतिक रूप से इतना शालीन और सद्भावना भरा क्यों नहीं होना चाहिए था? मुख्यमंत्री और विरोधी दल के नेता मेट्रो को एक साथ हरी झण्डी क्यों नहीं दिखा सकते थे? उद्देश्य जन-हित है या पार्टी-हित?    
यह प्राचीन इतिहास का भूला-बिसरा प्रसंग नहीं है कि शोध करके बताना पड़े कि मेट्रो की शुरुआत कब और किसने की. इसके लिए सपा का प्रदर्शन करना उतना ही हास्यास्पद है जितना भाजपा का स्वयं श्रेय लेना. सुखद है कि सपा शासन में शुरू हुई इस परियोजना को भाजपा सरकार ने उसी रफ्तार से पूरा होने दिया. वर्ना तो सत्ता में पार्टी बदलने पर पूर्व सरकार की विकास योजनाओं के साथ सौतेला व्यवहार करना हाल के दशकों में परिपाटी बन गयी है.
कई पुल, सड़कें एवं जनता के लिए नितांत आवश्यक विकास योजनाएं भी इसलिए अधूरी छोड़ दी जाती हैं कि उन्हें विरोधी पार्टी की सरकार ने शुरू कराया था. नयी सरकार वैसी ही दूसरी योजनाएं शुरू करती है, जिन्हें अधूरा रह जाने पर अगली सरकार फिर लटका देती है. सिर्फ श्रेय लूटने के लिए ऐसा किया जाता है, जबकि जनता वास्तविकता जानती है. यह जनता के साथ अन्याय और उसके धन की बरबादी ही है.
बहरहाल, प्रदेश की राजधानी मेट्रो वाली हो गयी है, हालांकि अभी बहुत छोटा हिस्सा इसके दायरे में आया है. दिल्ली-एनसीआर की जनता ने अपनी मेट्रो को इज्जत बख्शी है.  उसे अराजकता, फूहड़ता और गंदगी से बचा रखा है. नवाबों की नगरी की नयी उच्छृंखल पीढ़ी अपनी मेट्रो के साथ क्या सलूक करेगी? डिब्बों की दीवारों पर अश्लील टिप्पणियां, प्रेमियों के नाम, पान-गुटका की पीक के साथ दाद-खाज व नामर्दगी के अचूक नुस्खे वाले स्टिकर और राजनैतिक पोस्टर दिखाई देंगे या हम अपना सलीका बदलेंगे?
इस मौके पर तारीफ के चंद शब्द मेट्रो कॉर्पोरेशन के सबसे छोटे, बल्कि दिहाड़ी वाले कर्मचारियों  के लिए. जब से मेट्रो का काम चला और खुदाई एवं निर्माण के कारण सड़कें तंग हुईं, यातायात सम्भालने में लगे मेट्रो-सिपाहियों ने गजब की मुस्तैदी दिखाई. शहर का कोई भी इलाका, जो चौड़ी सड़कों और ट्रैफिक सिपाहियों की तैनाती के बावजूद अराजक नागरिकों की वजह से जाम से त्रस्त रहता था, वही मेट्रो निर्माण के साथ-साथ बावजूद बहुत सकून से चल रहा है. मेट्रो-सिपाही ट्रैफिक पुलिस से कहीं ज्यादा मुस्तैदी से संकरी हो गयी सड़कों पर बेहतर यातायात संचालित कर रहे हैं. मेट्रो के नव-गौरव में उनकी सलामी भी बनती है.
(सिटी तमाशा, नभाटा, 09 सितम्बर 2017)  






  

1 comment:

सुधीर चन्द्र जोशी 'पथिक' said...

यथार्थ चित्रित करता खूबसूरत लेख। सही कहा कि सत्तापक्ष और विपक्ष मिलकर इस लोकार्पण को साथ ही क्यों नही कर सकते। यह भी सही है कि मेट्रो सिपाहियों ने हमारी नियमित ट्रैफिक पुलिस से बेहतर काम करके दिखाया है। सलाम उनको ज़रूर जाना चाहिए।