Sunday, October 15, 2017

सिर्फ जुर्माने के नियम से क्या होगा

क्या आपको पता है कि सरे आम कहीं भी थूकने और पेशाब करने पर 500 रु जुर्माना देना होगा? सार्वजनिक स्थलों यानी घर के बाहर कूड़ा फेंकने और नाली जाम करने पर भी इतना ही जुर्माना आपसे वसूला जाएगा? पता है? बहुत अच्छी बात है. क्या जनता को इस नियम का डर है? क्या वे अपनी आदत बदल रहे हैं?
क्या आप किसी ऐसे व्यक्ति को जानते हैं जिस पर सड़क पर थूकने, पेशाब करने, कचरा फेंकने के लिए कभी जुर्माना किया गया हो? आप ऐसे किसी व्यक्ति को तलाश करने पर भी नहीं ढूंढ पाएंगे. लखनऊ नगर निगम ने आज तक किसी व्यक्ति पर शहर को गंदा करने के लिए जुर्माना लगाया ही नहीं.
22 मार्च, 2016 को लखनऊ नगर निगम की कार्यकारिणी ने अपनी बैठक में शहर को गंदा करने वालों पर यह जुर्माना लगाना तय किया था. राजधानी को स्मार्ट बनाना है, स्वच्छ भारत अभियान में योगदान करना है, सफाई के मानकों पर आगे बढ़ना है, इसलिए. बैठक में मुम्बई नगर निगम के नियमों का हवाला दिया गया, जहां इन गंदी आदतों के लिए नागरिकों पर एक हजार रु का दण्ड लगाने की व्यवस्था है. जोश में कहा गया था कि लखनऊ में भी एक हजार रु के जुर्माने की व्यवस्था की जानी चाहिए. हमारे सभासदों को अपनी जनता पर दया आ गयी. उन्होंने दलील दी थी कि मुम्बई की तुलना लखनऊ से नहीं की जा सकती. यहां जुर्माने की राशि आधी कर दी जाए. तब प्रस्ताव पास हुआ कि अगर कोई सार्वजनिक स्थान पर थूकता, पेशाब करता, कचरा फेंकता पाया गया तो उससे तत्काल 500 रु का जुर्माना वसूला जाएगा.
नियम बनाना एक बात है और उस पर अमल करना दूसरी बात. आज तक किसी व्यक्ति पर जुर्माना नहीं लगाया गया. गन्दगी फैलाने के लिए कुछ दुकानों व प्रतिष्ठानों से जरूर जुर्माना वसूला गया लेकिन किसी व्यक्ति पर यह दण्ड नहीं लगा. क्यों? नगर निगम के अधिकारियों का जवाब होता है कि इतने कर्मचारी ही नहीं हैं जो सारे शहर में घूम-घूम कर गन्दगी करने वालों को पकड़ें और जुर्माना वसूलें. शहर की सफाई व्यवस्था देखने की जिम्मेदारी सफाई निरीक्षकों की है और उनकी संख्या इतनी भी नहीं है कि वे नगर निगम के ठीक पड़ोस में लालबाग की एक गली को पेशाब में डुबो देने वालों को टोक सकें.
नतीजा यह है कि आधे से ज्यादा शहर खुले में कचरा फेंक रहा है, दीवारों पर धार मार रहा है, नालियों में प्लास्टिक की प्लेटें-थैले और जूठन फेंक रहा है. 19 मार्च 2016 के अपनी इसी स्तम्भ में हमने हिसाब लगाकर लिखा था कि सिर्फ पत्रकारपुरम चौराहे पर ही रोजाना करीब तीन हजार लोग खुले में लघु शंका निपटान करते हैं. इतने लोगों से जुर्माना वसूलने के लिए तो माओ की जैसी फौज चाहिए. सुनते हैं उन्होंने चीन की सड़कों पर लाखों की संख्या में कार्यकर्ता तैनात कर दिये थे. कोई भी कचरा फेंकने लगता तो वे अपने हाथ का कूड़ेदान उसके सामने कर देते. धीरे-धीरे सबकी आदत सुधर गयी.

असल में यह शुद्ध दिमाग का मामला है. न नियम बनाने से होगा न फौज-फाटे से. हाल ही में छपी वह फोटो याद होगी जिसमें एक केंद्रीय मंत्री किसी स्कूल की दीवार पर निपट रहे हैं और स्टेनगन धारी जवान उस वक्त भी  उनकी सुरक्षा में तैनात हैं. उनसे कौन जुर्माना वसूल लेगा? तो, जतन ऐसा चाहिए कि सफाई का विचार लोगों के जेहन में सदा के लिए बैठ जाए. यह कैसे होगा?
(नभाटा, सिटी तमाशा, 14 अक्टूबर, 2017) 

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