भारत की चुनावी राजनीति की पतन गाथा को आगे बढ़ाने के वास्ते एक और सेक्स-सीडी एवं
चार वीडियो-क्लिप जारी कर दिये गये हैं. इस बार गुजरात के पाटीदार अनामत आंदोलन
समिति के तेज-तर्रार नेता हार्दिक पटेल को लपेटने की कोशिश हुई है जो आसन्न गुजरात
विधान सभा चुनाव में भाजपा के प्रबल विरोधी और कांग्रेस-समर्थक के रूप में सामने
आए हैं. सोशल मीडिया पर वायरल हुए अलग-अलग वीडियो में हार्दिक पटेल को महिलाओं के साथ ‘मस्ती
करते’ दिखाया गया. पटेल ने इसके लिए
भाजपा को जिम्मेदार ठहराते हुए पलटवार किया है कि ‘भाजपा
गुजरात की महिलाओं का अपमान कर रही है. जनता 22 साल के लड़के का नहीं, 22 साल के विकास का वीडियो देखना चाहती है, अगर कुछ हुआ है तो.’
प्रमुख युवा दलित नेता जिग्मेश मेवानी ने हार्दिक के पक्ष में ट्वीट किया है कि यह
किसी की निजता में दखल है. मैं हार्दिक के साथ हूं. वैसे, पटेल कुछ दिन पहले ही आशंका व्यक्त कर चुके थे कि उनके
खिलाफ कोई फर्जी सीडी जारी की जा सकती है.
गुजरात में चुनाव प्रचार चरम पर है. भाजपा वहां कई तरफ से घिर गयी है.
कांग्रेस से उसे खास भय नहीं था लेकिन पटेलों, पिछड़ों
और दलितों के विरोध में डट जाने और कांग्रेस के पक्ष में दिखने से वह काफी परेशान
है. पहले उसने पाटीदार आंदोलन में फूट डालने की कोशिश की. नेताओं को खरीदने के
आरोप भी उस पर लगे. अब पटेलों के सबसे प्रभावशाली नेता के खिलाफ ये वीडियो सामने आये
हैं.
सत्ता की राजनीति में यह घिनौनी प्रवृत्ति की तरह उभरा है. जब भी किसी पार्टी
को जन-मुद्दों का जवाब नहीं सूझता या किसी ताकतवर विरोधी को पटकनी देनी होती है तो
मीडिया की मार्फत जनता का ध्यान भटकाने के लिए कहीं से एक सनसनी सामने ला दी जाती
है. सेक्स-सीडी से ज्यादा सनसनीखेज हमारे यहां और क्या हो सकता है? घोर अनैतिक हो चुकी राजनीति का यह बड़ा हथियार माना जाने लगा है. विकास के
मुद्दे पर शुरू हुआ गुजरात का चुनाव प्रचार सेक्स सीडी के घटिया स्तर तक बेवजह
नहीं आ गिरा है.
इस मामले में अधिकसंख्य पार्टियों का दामन साफ नहीं है. हाल ही में जब लालू
यादव की पार्टी राजद ने नीतीश कुमार की नशाबंदी नीति को निशाना बनाते हुए एक शराब
व्यवसायी-नेता के साथ मुख्यमंत्री की सेल्फी जारी की तो जवाब में बिहार के
सत्तारूढ़ गठबंधन की ओर से लालू-पुत्र और हाल तक उप-मुख्य्मंत्री रहे तेजेश्वरी
यादव का वह फोटो जारी कर दिया जिसमें वे एक लड़की के साथ बीयर की बोतल लिए खड़े हैं.
निशाना तेजेश्वरी थे, उस अबोध लड़की का
चरित्र-हनन भी किसी को दिखा क्या?
छत्तीसगढ़ के एक मंत्री की सेक्स सीडी प्रसारित करवाने की साजिश के आरोप में पत्रकार
और कांग्रेसी विनोद वर्मा की रातोंरात गिरफ्तारी अब भी सुर्खियों में है. सन 2008
में तत्कालीन भाजपा महासचिव संजय जोशी की सेक्स सीडी ने कम हंगामा नहीं मचाया था.
उस समय आरोपों के घेरे में नरेंद्र मोदी भी थे, राजनीति
में तेजी से उभरते संजय जोशी से जिनकी कतई नहीं बनती थी. 2009 में आंध्र प्रदेश के
तत्कालीन राज्यपाल नारायण दत्त तिवारी की सेक्स सीडी जारी हुई तो उन्हें इस्तीफा
देना पड़ा था. 2012 में कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिघवी की सेक्स सीडी ने हंगामा
खड़ा किया था. 2016 में कर्नाटक के शिक्षा मंत्री को इसी कारण इस्तीफा देना पड़ा था.
कुछ और पीछे देखें तो 1978 का वह काण्ड याद आता है जब जनता पार्टी की सरकार के
उप-प्रधानमंत्री एवं कद्दावर नेता जगजीवन राम के बेटे सुरेश राम की एक महिला के
साथ अंतरंग क्षणों की तस्वीरों ने सनसनी फैलाई थी. तब इलेक्ट्रॉनिक मीडिया नहीं था, लेकिन मेनका गांधी के सम्पादन में ‘सूर्या’ पत्रिका ने वे
तस्वीरें छापी थीं. निशाना जगजीवन राम थे, मार
किस पर पड़ी?
ये सभी ऐसे मामले हैं जिनमें किसी महिला ने सम्बंधित नेता पर यौन-उत्पीड़न जैसा
कोई आरोप नहीं लगाया. न पहले न बाद में. राजनेताओं पर महिलाओं का शारीरिक शोषण
करने के आरोप खूब लगते रहे हैं. मदद मांगने आयी महिला को फंसाने या किसी युवती को
उठवा लेने के कई किस्से आज के नेताओं के चरित्र का कच्चा चिट्ठा खोलते आए हैं.
यहां हम सिर्फ उन मामलों का जिक्र कर रहे हैं जिनमें सम्बंधित महिला ने नेता पर
आरोप नहीं लगाया. अगर वे सच्ची सीडी या तस्वीरें हैं तो सिर्फ यही बताती हैं कि जो
कुछ हुआ है वह दो वयस्क व्यक्तियों की रजामंदी से हुआ है, जिस पर किसी तीसरे को आपत्ति करने का अधिकार नहीं है. सीडी बनाई गयी है तो किसी ने साजिशन उनकी निजता का उल्लंघन किया है और उसका इरादा
कतई नेक नहीं हो सकता.
नेताओं को बदनाम करने के लिए ऐसी फर्जी सीडी भी खूब बनायी जाती हैं.
टेक्नॉलॉजी ने इसे बहुत आसान बना दिया है. मीडिया भी ऐसी चीजों को अति-उत्साह से उछालता
है. नेहरू-युग में शायद ही कोई अखबार रहा हो जिसने सिगरेट पीते अपने प्रधानमंत्री
की तस्वीरें छापी हों, जबकि नेहरू खूब
सिगरेट पीते थे. आज सेक्स सीडी के मामले भी बिना असली-फर्जी जांचे प्रसारित किए जा
रहे हैं.
राजनैतिक साजिशकर्ताओं से लेकर मीडिया तक यह नहीं देखते कि यह किसी की निजता
में अनावश्यक दखल है, उससे ज्यादा
महिलाओं का अपमान है और जनता का ध्यान जरूरी मुद्दों से भटकाने की बड़ी राजनैतिक
साजिश है. विरोधी को नुकसान पहुंचाने के लिए महिलाओं का अनैतिक इस्तेमाल किया जा
रहा है. मीडिया भी इस अपमान का बड़ा हिस्सेदार है. आश्चर्य और दुख तब और बढ़ जाता है
जब साजिशकर्ता या आरोप लगाने वाले दल की महिला नेताओं को भी इसमें अपना अपमान नहीं
दिखाई देता. उनकी तरफ से आपत्ति करना तो दूर, वे
स्वयं आरोप लगाने वालों की पंक्ति में जोश-खरोश के साथ शामिल रहती हैं. 1978
में सुरेश राम और एक लड़की के नग्न चित्र
छापने में मेनका गांधी को कोई संकोच नहीं हुआ था.
गुजरात में जारी हार्दिक पटेल के वीडियो असली हैं या नकली, यह महत्वपूर्ण नहीं है. बड़ा सवाल यह है कि जब सत्तारूढ़
पार्टी ‘मैं विकास हूं’ के नारे के साथ मैदान में है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
को सरदार पटेल के समकक्ष स्थापित करने की कोशिश की जा रही है तब विरोध में खड़े एक
पटेल नेता की छवि को ध्वस्त करने के लिए ऐसी साजिश की जरूरत किसे और क्यों पड़ रही
है? क्या विकास का मुद्दा अब चुनाव
जिताने वाला नहीं रहा? यह भी कि महिलाओं को
इस तरह कब तक अपमानित किया जाता रहेगा?
(प्रभात खबर, 16 नवम्बर, 2017)
1 comment:
सही विश्लेषण। परन्तु अब यह प्रवृत्ति कहीं भी जाकर रुकने वाली नही है। नैतिकता और अनैतिकता के समस्त भेद समाप्त हो गये हैं।
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