Friday, December 15, 2017

तो फिर कैसे कम हो भ्रष्टाचार ?


गोण्डा जिले के ऐलनपुर प्राथमिक विद्यालय में छात्रवृत्ति में गबन की एक शिकायत 2007 में लोकायुक्त कार्यालय में दर्ज की गयी. विद्यालय के तत्कालीन कार्यवाहक प्रधानाचार्य, एक ग्राम पंचायत अधिकारी और सहायक बेसिक शिक्षाधिकारी पर गबन का आरोप था. प्रदेश के तब के उप-लोकायुक्त ने इस शिकायत की जांच की. 2008 में उन्होंने अपनी जांच रिपोर्ट सरकार को सौंपी जिसमें तीनों को गबन का दोषी करार देते हुए उचित दण्ड देने की सिफारिश की गई थी.
लोकायुक्त या उप-लोकायुक्त जांच कर सकते हैं लेकिन दोषियों पर कार्रवाई का अधिकार उन्हें नहीं दिया गया. यह जिम्मेदारी सरकार ने अपने पास ही रखी. 2010 तक भी जब इस दोषियों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई तो उप-लोकायुक्त ने तत्कालीन सरकार को याद दिलाया कि गबन के दोषियों को दण्ड दिया जाना है. फिर भी फाइल दबी रही.
अब शिकायत के दस साल बाद और जांच रिपोर्ट सौंपे जाने के नौ साल बाद बीते गुरुवार को वर्तमान सरकार के पंचायती राज मंत्री ने विधान सभा को बताया कि फैजाबाद मण्डल के उप-निदेशक से जांच कराई गई तो उस मामले में गबन की शिकायत सही नहीं पाई गयी.
लोकायुक्त या उप-लोकायुक्त की जांच रिपोर्टों का क्या हश्र होता है, यह प्रसंग साफ बता देता है. अव्वल तो सरकारें उनकी रिपोर्ट पर कार्रवाई नहीं करतीं, सिफारिशें धूल खाती रहती हैं. यह मामला तो और भी अद्भुत है. उप-लोकायुक्त की जांच के बाद जिले के एक छोटे अफसर से जांच कराई गयी जिसमें गबन मिला ही नहीं. फिर, उप-लोकायुक्त की जांच का अर्थ ही क्या रहा?  
प्रशासनिक सुधार आयोग (1966-1970) ने सिफारिश की थी कि राजनैतिक और प्रशासनिक भ्रष्टाचार पर अंकुश के लिए केंद्र में एक लोकपाल और राज्यों में लोकायुक्त नियुक्त किये जाने चाहिए जो अधिकारियों से लेकर मंत्रियों तक के खिलाफ भ्रष्टाचार की शिकायतों की जांच कर सकें. केंद्र सरकार ने तो लोकायुक्त की तैनाती नहीं की लेकिन 1971 में सबसे पहले महाराष्ट्र सरकार ने अपने यहां लोकायुक्त नियुक्त किया. उसके बाद धीरे-धीरे कई राज्यों ने लोकायुक्त एवं उप-लोकायुक्त की तैनाती की. आज उत्तर-प्रदेश समेत 22 राज्यों में लोकायुक्त एवं उप-लोकायुक्त तैनात हैं. लोकायुक्त से कोई भी शिकायत कर सकता है. वे मंत्रियों से लेकर अधिकारियों तक के खिलाफ शिकायतों की जांच कर सकते हैं.
लोकायुक्तों की जांच में अनेक बार मंत्री तक दोषी पाये गये हैं लेकिन उन पर कार्रवाई नहीं हुई. ताजा गम्भीर मामला पिछली अखिलेश सरकार में मंत्री रहे गायत्री प्रजापति का है. उनके खिलाफ पद के दुरुपयोग और भ्रष्टाचार की कई शिकायतें थीं. कुछ लोकायुक्त तक भी पहुंची. लोकायुक्त की जांच में गायत्री दोषी पाये गये. उनके खिलाफ कार्रवाई करना तो दूर जांच रिपोर्ट तक विधान सभा में पेश नहीं की गयी, जिसका संवैधानिक प्रावधान है. उलटे, गायत्री की हैसियत सरकार में बढ़ती गयी. राज्यमंत्री से कैबिनेट मंत्री बनाये गये. पारिवारिक विवाद के कारण एक बार अखिलेश ने उन्हें हटाया भी तो मुलायम के दवाब में फिर रख लिया था.

जाहिर है, लोकायुक्त की तैनाती सिर्फ दिखावा है. बहुत कम मामलों में छिट-पुट कार्रवाई कभी हो गयी तो अलग बात, वर्ना कोई भी सरकार उनकी जांच रिपोर्टों को गम्भीरता से लेती नहीं. प्रदेश के पूर्व लोकायुक्त एन के मेहरोत्रा ने राज्य के कुछ चर्चित भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ जांच करके कारवाई के लिए सरकार को लिखा. कई बार सख्त चिट्ठियां लिखीं लेकिन सरकार मौन बैठी रही थी.
(सिटी तमाशा, नभाटा, 16 दिसम्बर, 2017) 

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