Friday, February 09, 2018

जनता मूर्ख और झोला छाप दोषी, बस?




उन्नाव के एक झोला छाप डॉक्टर को दोषी ठहराया जा रहा है कि उसने एक ही सुई से कई मरीजों को इंजेक्शन लगाया. इससे दर्जनों लोगों में खतरनाक एचआईवी का संक्रमण हो गया. इसके दूसरे कारण भी होंगे लेकिन झोला छाप की भूमिका तो है ही.

झोला छाप डॉक्टर ने बहुत बड़ा अपराध किया है. ऐसे कई झोला छाप जगह-जगह इलाज कर रहे हैं. उन्हें सजा जरूर मिलनी चाहिए. शासन-प्रशासन में बैठे लोग यह भी उपदेश दे रहे हैं कि जनता को जागरूक किया जाना जरूरी है कि वे इलाज के लिए ऐसे जल्लादों के पास नहीं जाएं. वाजिब बात है.

लेकिन क्या ये छोला छाप ही असली दोषी हैं? या क्या हमारी गरीब, ‘नासमझजनता दोषी है?

उन्नाव के जिस इलाके में इलाज के नाम पर यह भयावह काण्ड हुआ है, जरा वहां के लोगों की बात सुन ली जाए. बांगरमऊ के लोग बताते हैं कि वहां के सामुदायिक केंद्र में दवाएं नहीं मिलतीं. वहां के डॉक्टर मरीज को देख कर पर्चे पर दवाएं लिख देते हैं. जब मरीज पास की दवा की दुकान में जाते हैं तो एक बार की दवा में कम से कम दो सौ रु खर्च हो जाते हैं. गरीब आदमी के लिए दो सौ रु की दवाएं कहां से खरीदे? वे या तो एक बार किसी तरह दवा लेकर इलाज बीच में छोड़ देते हैं या कोई सस्ता उपाय ढूंढते हैं.

सस्ते उपाय बहुत आसानी से मिल जाते हैं. जिस छोला छाप जल्लाद को एक ही सुई कई मरीजों को लगाने का दोषी ठहराया जा रहा है, वह सिर्फ दस रु में इलाज करता था. एक सुई और तीन पुड़िया दवा. उसके पास एक दिन में कम से कम डेढ़ सौ मरीज आते थे. सुबह नौ बजे से रात 10-11 बजे तक. ये मरीज सरकारी सामुदायिक केंद्र या प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र क्यों नहीं जाते? वे नासमझ नहीं हैं. गरीब हैं, इसलिए.

तो, असली दोषी कौन है? वे सरकारें क्या जिम्मेदारी से मुक्त हो सकती हैं जो आज तक गरीब-गुरबों के लिए सस्ती और सुलभ चिकित्सा व्यवस्था नहीं कर सकीं? वादे और घोषणाएं बहुत हुईं लेकिन असलियत यह है कि गरीब जनता (को हमारी सरकारें ही झोला छाप जल्लादों के पास जाने को मजबूर किये हैं. असली डॉक्टर और सस्ती दवाएं जनता को उपलब्ध होतीं तो क्या वे जल्लादों के पास जाते?

हाल में पेश केंद्रीय बजट में पचास करोड़ लोगों के लिए स्वास्थ्य बीमा योजना का ऐलान किया गया है. यह लागू कैसे होगी, बीमा का प्रीमियम कौन भरेगा और कहां से? बहुत से सवाल हैं. लुभावनी घोषणाएं पहले की सरकारों ने खूब कीं. यह सरकार भी कर रही है. ऐसी घोषणाओं से वोट मिल जाएंगे लेकिन इनसे न जनता का पेट भरेगा, न खाते में धन आयेगा, न सस्ता व अच्छा इलाज मिलेगा. इस तंत्र को सरकारें आम जनता के लिए चला ही नहीं रही हैं.

इसलिए झोला छाप डॉक्टरोंके खिलाफ अभियान चलाने और जनता को जागरूक करने की बातें सिर्फ अपनी जिम्मेदारी से भागने का बहाना हैं. पूरा चिकित्सा तंत्र धनिकों के वास्ते है. शहरी मध्यवर्ग भी सरकारी अस्पतालों में मारा-मारा फिरता है. इसीलिए बड़े-बड़े लुटेरे नर्सिंग होम खुले हैं. कस्बों-देहातों में इसीलिए डॉक्टर के नाम पर जल्लाद फैले हैं.

माननीयो, आप अपने वेतन-भत्ते बढ़ाओ. झोला छाप तो रहेंगे और इलाज के नाम पर जनता मरेगी भी.
(सिटी तमाशा, नभाटा, 10 फरवरी, 2018)

1 comment:

EOK said...

Now,the blog is also available on https://essenceofkumaun.com/