Friday, April 13, 2018

जन सुनवाई पोर्टल पर शिकायत का हश्र



‘’आपका आवेदन पत्र संख्या 40015718017892, जो अपर मुख्य सचिव/प्रमुख सचिव/सचिव को सम्बोधित है, पोर्टल पर दर्ज हो गया है.” अपने मोबाइल पर यह संदेश देख कर हम बहुत खुश हुए. यह टेक्नॉलॉजी का जमाना है. प्रदेश सरकार ने भी अपना पोर्टल बनाया है.  उस पर लॉग-इन कीजिए और शिकायत दर्ज करा दीजिए. अधिकारियों-मंत्रियों तक भाग-दौड़ की जरूरत नहीं.

सुबह 10.12 बजे शिकायत दर्ज हुई थी और रात 10.14 पर संदेश प्राप्त हुआ कि आपका आवेदन पत्र सचिव, स्टाम्प एवं रजिस्ट्रेशन को अग्रिम कार्यवाही हेतु प्रेषित कर दिया गया है. हमें सरकार की तेजी पर दांतों तले अंगुली दबानी पड़ी. किस्सा यह कि हमने सन 2007 में एक निजी बिल्डर से दो कमरे का एक फ्लैट खरीदा. बैंक से ऋण लेकर बिल्डर को पूरा भुगतान कर दिया. दो-ढाई साल में फ्लैट देने का वादा था. समय पर न दे पाने की स्थिति में दण्ड स्वरूप कुछ भुगतान का वादा भी था.

बहुत दौड़-भाग करने पर करीब नौ साल के बाद  2016 में रोहतास प्लूमेरिया में फ्लैट का कब्जा मिला. सुविधाविहीन आधे-अधूरे परिसर में भी कब्जा मिल जाने पर खुशी हुई थी. पूर्ण अग्रिम भुगतान के बावजूद आज तक न पार्किंग मिली, न क्लब बना, न समुचित सफाई, सुरक्षा की व्यवस्था, आदि-आदि. उससे बड़ी समस्या यह कि रोहतास बिल्डर फ्लैट की रजिस्ट्री कराने को राजी नहीं. हजार के आस-पास आवंटी परेशान. धरना-प्रदर्शन, लविप्रा, डीएम, आदि को ज्ञापन का बिल्डर पर कोई असर नहीं. फिर सबने मिलकर एफआईआर करा दी.

जनसुनवाई पोर्टल का ढोल बज रहा था. सबने पोर्टल पर अलग-अलग शिकायतें दर्ज कराईं और खुश हुए कि अब तो कुछ नतीजा निकलेगा. बीते सोमवार को मोबाइल सन्देश प्राप्त हुआ कि “संदर्भ संख्या 40015718017892 का निस्तारण कर दिया गया है. निस्तारण आख्या जनसुनवाई पोर्टल/मोबाईल ऐप के माध्यम से देखी जा सकती है.” हमने अत्यंत प्रसन्नता से पोर्टल खोला. आख्या में लिखा है –“प्रश्नगत प्रकरण का परीक्षण किया गया. स्टाम्प एवं रजिस्ट्रेशन विभाग को किसी प्रकार की दण्डात्मक कार्यवाही के लिए विलेख की आवश्यकता होती है. बिना किसी लेखपत्र के किसी प्रकार की स्टाम्प वसूली या दण्डात्मक कार्यवाही किया जाना सम्भव नहीं है.....”

सरकारी हिंदी समझने में पाठकों का मानसिक श्रम बचाने के लिए हम आगे के संदेश का आशय बता दें. लिखा है कि अगर बिल्डर जानबूझ कर रजिस्ट्री नहीं कर रहा है या इसके लिए अनुचित धन मांग रहा है तो उसके खिलाफ एफआईआर करानी चाहिए और कानूनी सलाह लेकर अदालत में मुकदमा दर्ज कराना ठीक रहेगा. हरेक शिकायतकर्ता को यही जवाब भेजा गया है.

हमारी  उम्मीदों पर पानी फिरना ही था. पोर्टल पर जो दस्तावेज मांगे थे वे हमने अपलोड कर दिये थे. और क्या विलेखचाहिए, यह बताते तो वह भी उपलब्ध करा देते. एफआईआर पहले ही दर्ज कराई जा चुकी थी. कुछ आवण्टी अदालत की शरण भी जा चुके हैं. सामूहिक रूप से अदालत जाने पर भी एसोसियेशन विचार कर रही है. जनसुनवाई पोर्टल ने हमें क्या नया बताया? हमारी क्या मदद की? हमारी समस्या का क्या समाधान किया?

लाल फीते वाली फाइलें हों या टेक्नॉलजी का नया जमाना, सरकारी तंत्र की मानसिकता नहीं बदलती. उसे जनता की समस्याओं के वास्तविक समाधान से कोई मतलब नहीं. उसे बस शिकायती पत्र का निस्तारण कर देना होता है. कई बिल्डर इसी तरह आवण्टियों और सरकार को ठग रहे हैं. रजिस्ट्री की पूरी रकम सरकारी खजाने में जानी है. तब भी सरकार रजिस्ट्री न कराने वाले बिल्डरों पर कार्रवाई नहीं कर रही.  

जनसुनवाई पोर्टल पर निस्तारित शिकायतोंकी बढ़ती संख्या देख कर सरकारी तंत्र अपने गाल बजा रहा होगा. जनता समस्या के जस का तस रहने पर माथा पीटने के अलावा क्या कर सकती है?

(सिटी तमाशा, 14 अप्रैल, 2018)


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