Saturday, April 28, 2018

‘कूड़ेवाली’ की रोजी और निजी कम्पनी का ठेका



कई साल से वह रविवार के अलावा हर सुबह घर से कूड़ा ले जाने आती है. एक ठेलिया पर दो बांस फंसा कर  एक बड़ा-सा थैला उस पर फैलाती है. वह थैला कई बोरों को एक में सिल कर बनाया हुआ है. उसके भी दो हिस्से हैं, जिनमें वह अलग-अलग तरह का कूड़ा छांट कर रखती हे. उसका कोई नाम रखा गया होगा मगर अब वह सिर्फ कूड़ेवाली है. साथ में तीन छोटे-बड़े बच्चे भी होते हैं. सब मिलकर हर घर से कूड़ा मांगते हैं, उसे ठेलिया फैला कर बीनते हैं. फिर ठेलिया धकेल कर ले जाते हैं.

बच्चे, बच्चे ही होते हैं. वे कूड़े में अपने लिए खेल की चीजें तलाश लेते हैं. खेलते हैं, आपस में लड़ते हैं और डांट खाते हैं. बच्चे हर घर की तरफ उम्मीद से देखेते हैं. कुछ घरों से बासी-तिबासी मिल जाता है. कूड़ेवालीजब कभी छुट्टीपर अपने देस जाती है तो किसी कूड़ेवाली को तैनात कर जाती है. सम्भवत: बांग्लादेशी मूल की है और पूर्वोत्तर भारत के किसी ठिकाने अपना घरया देसकहती है.

तीस रुपये से शुरू हुआ उसका मासिक मेहनताना अब पचास रुपये है, जिसके लिए वह पहली तारीख की सुबह ही तगादा कर देती है. इस शहर में वह जहां भी रहती है, वहां पानी की कोई व्यवस्था नहीं है. हमारे मुहल्ले से पानी के बर्तन भर ले जाती है. इसके लिए उसने टूटी बाल्टियां, टूटे-फूटे डिब्बे जमा कर रखे हैं. गर्मियों में ठण्डे पानी का आग्रह भी वह कुछ घरों से करती है. जाड़ों में सूखा कूड़ा जला कर तापती है.
इधर कुछ समय से डरी हुई है कि उसका रोजगार छिन न जाए. कई बार वह दयनीय चेहरा बना कर आग्रह कर चुकी है- वो गाड़ी वाला आएगा, उसको कूड़ा नहीं देना.हुआ यह कि एक-दो बार कूड़ा उठाने वाली एक गाड़ी मुहल्ले में दिखाई दी. गाड़ी में सवार नौजवानों ने कहा, अब हम कूड़ा ले जाया करेंगे. हालांकि उसके बाद वह दिखाई नहीं दिये.

नगर निगम ने एक निजी कम्पनी को हर घर से कूड़ा उठाने का ठेका दे दिया है. कूड़ेवाली को लगता है कि अब उसका काम छिन जाएगा. कूड़ेवाली के पास कूड़े के निस्तारण की कोई व्यवस्था नहीं होगी. प्लास्टिक, आदि कबाड़ के भाव बेच कर वह बाकी कहीं फेंकती होगी. यह शहर की सफाई के लिए अच्छा नहीं है. निजी कम्पनी के पास बेहतर व्यवस्था होगी. कूड़ा उसे ही दिया जाना चाहिए लेकिन कूड़ेवाली का क्या करें? उसके जैसे कितने ही परिवार इस तरह गुजारा कर रहे हैं.

नगर निगम से लेकर निजी कम्पनियों तक को यह अक्ल कभी नहीं आएगी कि वे घर-घर से कूड़ा उठाने के काम में इन कूड़ेवालियों को शामिल करें. उनका रोजगार छीनने की बजाय उन्हें कूड़ा उठाने वाली गाड़ियां दें. बेहतर कपड़े और बेहतर मजदूरी दें. शहर की सफाई-व्यवस्था में उन्हें भी शामिल करें. ये बेहतर और परिश्रमी साबित होंगे. नियमित आएंगे. निजी कम्पनी ने जिन्हें भी कूड़ा उठाने के काम में रखा है, हर वार्ड से शिकायत है कि वे आते ही नहीं. जहां जाते भी हैं, वहां जमीन में कूड़ा गिरने पर उठाते नहीं. सभासद तक उनकी शिकायत कर रहे. कूड़ेवाली घर के सामने भी झाड़ू लगा देती है.

किसी भी योजना से विस्थापित होने वालों को उस योजना का हिस्सा नहीं बनाया जाता. समावेशी विकासभाषणों में होता है. इसलिए गरीब और उजड़ते जाते हैं. नेताओं-अफसरों को गरीबों का उजड़ना दिखाई नहीं देता. फिलहाल निजी कम्पनी के नाकारापन से कूड़ेवालियों का रोजगार चल जा रहा है.

(सिटी तमाशा, नभाटा, 28 अप्रैल, 2018)


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